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देख के तुझे हम सवरते थे कभी, तेरा नाम सुन निखरते थे कभी। आज भी तरो ताज़ा है वो मंज़र, जब तेरी गलियों से गुजरते थे कभी।। स्वरचित : निखिल घावरे ...