दर्द

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दर्द की छाँव मे रहती हूँ! जहर को अमृत समझ पीती हूँ! काले घने साए के बोझ को सहती हूँ! बरसात मे तन्हा अक्सर मे रोती हूँ! वक़्त की मार को ...

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