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मेरी काव्यखण्ड कलयुग से -------- काल चक्र चलता रहेगा.... तिल-तिल कर ही छूट रहा है, गत प्राचीन सभी मानक, नगरों को वैभव ने लूटा ,कर दिया मंद मति भ्रामक। सहज सरल ...