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*व्यभिचारी शिक्षक* ज्ञानार्थ पाठशाला में, शिक्षक ऐसे भरे पड़े हैं। स्वार्थ अर्थ का मन में, देह में काम भरे बैठे हैं। ज्ञान शलाखा हाथ लिए, बनते हैं गुरु पिता समान। मगर ...