व्यभिचारी शिक्षक

1 Part

403 times read

6 Liked

*व्यभिचारी शिक्षक* ज्ञानार्थ पाठशाला में, शिक्षक ऐसे भरे पड़े हैं। स्वार्थ अर्थ का मन में, देह में काम भरे बैठे हैं। ज्ञान शलाखा हाथ लिए, बनते हैं गुरु पिता समान। मगर ...

×