सांस नाश में बिकने लगी, न रहे कला के कदरदान। आंगन को जीवित जला के, मूर्ख ख़ुशियाँ ढूँढे इंसान।। समां बुझी परवाना बुझा, जल गया समस्त जहांन। अपनो को सम्भव पूर्ण ...

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