गजल

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*ग़ज़ल* खर्चे की मार दोस्तों घर घर दिलों पे थी।  भोजन के साथ साथ में बिजली बिलों पे थी ।  मासूम वो बला के थे खुद अपने हुस्न में।  तोहमत हमारे ...

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