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...... मुट्ठी भर आकाश..... घिस जाने दो पैर को लकीरें हांथ की लकीरें भी बदल जाएंगी खिल उठेंगे कमल दल पंक से लहरें भी सरोवर की बदल जाएंगी भर लो आकाश ...