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*ग़ज़ल* रंजिश भरी फजाएँ है ये दिल इधर उधर । खंजर बदस्त फिरते है कातिल इधर उधर । वो आये या ना आये उन्हें इख्तियार है। हम तो सजाए बैठे है ...