समर्पण

1 Part

497 times read

19 Liked

ले चल मेरे मालिक मुझको पार जगत् के धीरे - धीरे। सौंप दिया है मैंने तुझको अपना जीवन धीरे - धीरे।।  जहाँ न कोई सूरज उगता, जहाँ न काली रातें हो ं, ...

×