Adhure khwaab si ho gayi hun

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आज वो अधूरे ख़्वाब सी हो गयी हूँ, जो कभी अमरबेल की शाख से उतरे प्रेम सा मुक्कमल हुआ करती थी । फिर न जाने कब ढल गयी कि वक़्त का ...

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