ग़ज़ल

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*ग़ज़ल* तुम जहाँ हम वहाँ से दूर नहीं। अपनी मंजिल निशाँ से दूर नहीं।  ये अलग जिंदगी अभी चुप है। आईना हक बयाँ से दूर नहीं। किस कदर बढ़ गयी है ...

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