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उम्र भर बन परिंदा भटकता रहा, आशियाना मुझे घर बुलाता रहा, शाम ढलती रही दरबदर शहर में, बारिशों में नशेमन जलाता रहा। फुर्सतें गर मिले तो मिलाऊँ नज़र, बाद पूरा करूँ ...