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नवगीत काँटे ही चुनते रहे, रहने दिए गुलाब। मन की दुविधा का कहीं, मिलता नहीं जवाब।। आम्र विटप बोता मनुज, उगते शूल बबूल। कहाँ कर्म से है हुई, पीड़ादायक भूल।। अब ...