दीवार नां बनो...( कविता )

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दीवार नां बनो... मेरी मज़बूरी को समझो तुम, नादां मत बनो जो टूट जाऊं मैं छन से, वो दीवार नां बनो उम्मींद है तुम्हारे साथ, बुढ़ापा बीतेगा मेरा मेरे बुढ़ापे की ...

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