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नीड़ परिंदे का उजड़ा, मौज से हार कर बैठा, बिखरे जमीन पर तिनके, खुदा से रूठ कर बैठा। कहाँ कोई निशां बाकी, न कोई छोर जीवन का, डुबा के कस्तियाँ अपनी, ...