मेरी कविता

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जब तक  बोलती हूं  टोकती हूं बहस करती हूं उलझती हूं तुनकती हूं झगड़ती हूं तभी तक समझो मैं तुम्हारी हूं तुमसे लड़ रही हूं तुम्हारे लिए मन से साथ जिसके ...

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