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भव अलिंद है कृपा प्रभु की, वसुधा कण-कण महक रहा है, सरिता के कल-कल में कम्पित, शुभ्र अमिय रस छलक रहा है। नभ से झांके सुबह दिवाकर, फैलाए सतरंगी चादर, थाल ...