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प्राकृतिक सौंदर्य का मानवीकरण कविता : नीला-नीला ये नभ रहे विस्तारित ज्यों, धरा पर पितृ छाया का ज्यों आभास लगे। भूरे गुलाबी काले सफेद रंग बदलते मेघ, बने- ठने सेठ कोई ...