तेरे बग़ैर

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तेरे बग़ैर तेरे बग़ैर जिंदगी अधूरी ही रह गई। चाहे क़रीब आऊँ पर,दूरी ही रह गई।।     मज़हब का भेद था कभी,तो ज़ात-पाँत का।     कभी सरहदे मुल्क़ की,मजबूरी ...

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