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मन अंतर में कानाफूसी, चले निरंतर भावों की। कभी उलझते धागे मन के, कभी जीत सद्भावों की। कहाँ प्रेम का पौधा रोपा, कब अहम की खटास हुई, किसने मरहम रखा जख्म ...