कंकाल-अध्याय -४८

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में एक सच्चे साधु के फँस जाने, ठग जाने का यह लज्जित प्रसंग अब किसी से छिपा नहीं-इसलिए मैं जाना चाहता हूँ।' 'तो रोकता कौन है, जाओ! परन्तु जिसके लिए मैंने ...

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