कंकाल-अध्याय -५०

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कहने वाला बाथम था। उसके साथ भय-विह्वल घण्टी नाव पर चढ़ गयी। डाँड़े गिरा दिये गये। इधर नवाब का सिर कुचलकर जब विजय ने देखा, तब वहाँ घण्टी न थी, परन्तु ...

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