कंकाल-अध्याय -५६

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शीतकाल के वृक्षों से छनकर आती हुई धूप बड़ी प्यारी लग रही थी। नये पैरों पर पैर धरे, चुपचाप गाला की दी हुई, चमड़े से बँधी एक छोटी-सी पुस्तक को आश्चर्य ...

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