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चेतना!! चेतना शून्य, हुई है मानवीयता!! अबोध अनजान बनकर, अनकहे शब्दों से दबकर, चतुराई का लबादा ओढ़े लिप्त है, मानव स्वार्थ और अपनेपन में! स्वयं में डूब कर, स्वयं से ही ...