कंकाल-अध्याय -७८

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यमुना के पुलिन में नैश अन्धकार बिखर रहा था। तारों की सुन्दर पंक्ति झलमलाती हुई अनन्त में जैसे घूम रही थी। उनके आलोक में यमुना का स्थिर गम्भीर प्रवाह जैसे अपनी ...

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