धूप और धुंध

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ओढ़कर चादर कोहरे की, वसुधा मोती जड़वाए। न बिछौना दिनकर ही छोड़े, न सुस्ती धूप की जाए। ये भटकती दूर तक नजरें, किसी दीदार को तरसे, फूलों पर शबनम ठहरी है, ...

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