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भुला बैठे हैं हम खुद को, शिकायत फिर भी है हमसे। खड़े हैं महफ़िल में तन्हा, अज़ीयत फिर भी है हमसे। सजाए फूल कागज के, कहाँ गुलदान में खुशबू। बर्क़ कर ...