ख़लिश

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तुम न समझोगे जो न गुजरी, ग़म-ओ-अलम बढ़ता ही जाए। झुकी हुई हैं नजरें उनकी, दिल की ख़लिश दिल में छिपाए। तेरी मुहब्बत के जलजले में, खुद अपने को ढूंढ़ रहा ...

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