अपने कब पराए हो गए.. घर कब मकान हो गए

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गली-मोहल्ले अब सुनसान हो गए हैं, अब पड़ोस वाली आंटी के घर की खिड़की का काँच नहीं फूटता, न ही अब तेज रफ्तार से उछाल खाती हुई गेंद छत पर जाती ...

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