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जज़्ब कर लिए आंख में आँसू, बिखरे जज़्बात को दफ़्न किया। दास्तां-ए-दिल किसे सुनाएं, क़तरा-ए-अश्क को जज़्ब किया। हुश्न-इश्क की ओढ़ के चादर, सब रिश्तों को धता बताकर, खऩक बढ़ गई ...