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नवगीत साजन साहब बनकर फिरते, निर्णय कब वह ले पाती। राजकाज उनसे ही चलता, वह बस पद पा इतराती। नहीं उजाला उसका अपना, वह क्या जाने दिवस प्रभा। सरपंच अंदर चूल्हा ...