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*चाणक्य-नीति के दोहे* तिनका-छप्पर रोक दे,तेज वृष्टि की धार। सबल एकता थाम ले,प्रबल शत्रु का वार।। दुर्जन-संगति त्याग कर,रखें साधु सँग प्रीति। करें भजन प्रभु की सतत,यही मनुज की रीति।। बढ़े ...