लेखनी कहानी -09-Feb-2024

0 Part

225 times read

18 Liked

11 मेरी ओरत मायके चली बदनसीब समझता मैं खुद को झोरु के क्यो ना पले बन्धा दिन-रात उसी की आहट की क्षुद को सम्भाल अपनी आवेश दिया कंधा मन में मेरे ...

×