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समय की इस धारा को कैसे झेलूंगी बाग में तू न आई तो मैं किसीसे मिलूंगी अजीब है न यह पश्चिमी सभ्यता एक गुलाब के चक्कर में कहीं न पिट जाउंगी।। ...