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कविता का शीर्षक:- दहेज बहुत सी कुरीतियां समाप्त हो चुकी हैं पर इसे क्यों समाज ढ़ोता आ रहा हैं स्वार्थ में कितना अंधा होता जा रहा हैं इसके दुष्परिणामों को ...