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*अष्टावक्र गीता*(दोहे )-5 प्रकृति परे मैं शांत हूँ, ज्ञान विशुद्ध स्वरूप। रहा मोह संतप्त कह,विस्मित जनक अनूप।। करूँ प्रकाशित विश्व को,और प्रकाशित देह। मैं ही पूरा विश्व हूँ,कह नृप जनक विदेह।। ...