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ग़ज़ल की महफ़िलों में जब भी तिरा नाम आया। मेरे होटों पे छलकता हुआ एक जाम आया।। नश्शा संभाले है बहके हुए क़दम भी नहीं; समझते कुछ नहीं थे आज वही ...