अष्टावक्र गीता-दोहे -8

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अष्टावक्र-गीता-8 विमल-एक-चैतन्य मैं,जग असत्य है धूल। इसकी तो औषधि नहीं,द्वैत दुखों का मूल।। खुद में कल्पित सकल गुण,मैं हूँ ज्ञान-स्वरूप। इन सबसेअनभिज्ञ हो,स्थित रहूँ अनूप।। मुझे नहीं बंधन रहे,नहीं मुक्ति की ...

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