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गर्व न कर इस काया पर, माटी में मिल जाएगी। चार दिनों का है ये जीवन, कद-काठी जल जाएगी। मुट्ठी मारे जग में आया, हाथ पसारे जाएगा, संगी-साथी मरघट तक हैं, ...