अष्टावक्र गीता-दोहे -10

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*अष्टावक्र गीता*-10 अद्वैती नर हो जिसे,मोक्ष-अर्थ का ज्ञान। काम-वासना लिप्त यदि,विस्मय यही महान।। काम-वासना ज्ञान-रिपु,यदि रह अंतिम काल।  है अशक्त,आश्चर्य यह,जाय काल के गाल।। विरत लोक-परलोक से,ज्ञानी नित्य-अनित्य। यदि डरता है ...

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