*अष्टावक्र गीता*-16 हर्ष-शोक-इच्छा-ग्रहण,त्याग-क्रोध हैं शूल। ये, कह अष्टावक्र जी,जग-बंधन के मूल।। हर्ष-शोक-इच्छा-ग्रहण,त्याग-क्रोध-मन हीन। रहे मुक्त बंधन सदा,निर्मल मन शालीन।। रहे सदा बंधन बँधा, दृश्यमान-आसक्त। बंधन-मुक्त अनिच्छ मन,कभी न माया-भक्त।। 'मैं' या ...