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*अष्टावक्र गीता*-17 धन्य पुरुष लख जगत की,सारी इच्छा व्यर्थ। जीवन-इच्छा-भोग को,माने सदा अनर्थ।। हैं दूषित त्रय ताप ये,निंदा-योग्य,असार। इसी सत्य को जानकर,होते शांत विचार।। कौन उम्र वा काल में,रहे न संशय-जाल। ...