सपने

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बुनती हूँ सपने, नित नए-नए! उषा काल की, प्रथम वेला में! भरती हूँ आँचल में, अरुणोदय की लालिमा! चंचल किरणों की अठखेली, सतरंगी इन्द्र धनुष! स्वछन्द नीला आकाश, शांत गहरा समंदर! ...

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