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गृहणी!! जिसका गृह ऋणी!! भोर की पहली किरण, मुखड़े पर पड़ते ही, आँखें मलते हुए, नींद को धकेलकर, जिम्मेदारी की चादर, तन पर लपेट लेती है! पुरुष कुनमुनाकर, करवट बदल कर, ...