दो कतरे की प्यास

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*दो कतरे की प्यास* नौ मास कोख की तपती धरा में तृषित रही अनचाही थी तभी भीतर ही भीतर सुलगती रही कभी दुलार से जननी ने भी सहलाया था मेरा भ्रूण ...

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