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श्वेत चुनरिया ओढ़ के निकली, कोई नहीं था दाग। कर्मों का फल मिलता कैसे, सोच रही चुपचाप। करती हूं आराधन प्रभु का, सुंदर साज सजाए, कभी बजाई वीणा धुन पर, और ...