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ग़ज़ल --------------- गए गुजरे दहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा, हमें अहले कहर ने तो कहीं का भी नहीं छोड़ा,, उजड़ने भी नहीं देता बसाता भी नहीं दिल मे, ...