शायरी

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गम उठाऊँगा तो कुछ और संवर जाऊँगा में तेरी ज़ुल्फ़ नही जो खुलके बिखर जाऊँगा ,जो कुछ देना है मुझे बिन मांगे दे दे हाथ फैलाऊंगा तो नज़रों से गिर जाऊँगा ...

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