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मेरा प्रियतम सालों से व्याकुल था मेरा ये चंचल मन, दर्शन की खातिर ,जाने को वृंदावन, रास्ता न कोई मुझे ,नजर आता था, दिल ये बैचैन हुआ जाता था, जाने कैसे ...